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Showing posts from July, 2020

वर्ण विचार

वर्ण, वर्णमाला की परिभाषा- वर्ण(Phonology)-  वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं-  वह सबसे छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाती है। दूसरे शब्दों में-  भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। और इस ध्वनि को वर्ण कहते है। जैसे- अ, ई, व, च, क, ख् इत्यादि। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते। उदाहरण द्वारा मूल ध्वनियों को यहाँ स्पष्ट किया जा सकता है। 'राम' और 'गया' में चार-चार मूल ध्वनियाँ हैं, जिनके खंड नहीं किये जा सकते- र + आ + म + अ = राम, ग + अ + य + आ = गया। इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं। हर वर्ण की अपनी लिपि होती है। लिपि को वर्ण-संकेत भी कहते हैं। हिन्दी में 52 वर्ण हैं। वर्णमाला(Alphabet)-  वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। इसे हम ऐसे भी कह सकते है, किसी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते हैै। प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है। हिंदी- अ, आ, क, ख, ग..... अंग्रेजी- A, B, C, D, E.... वर्ण के भेद हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार के होते है-...

व्याकरण क्या है

व्याकरण (Grammar) की परिभाषा व्याकरण- व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा हमे किसी भाषा का शुद्ध बोलना, लिखना एवं समझना आता है। भाषा की संरचना के ये नियम सीमित होते हैं और भाषा की अभिव्यक्तियाँ असीमित। एक-एक नियम असंख्य अभिव्यक्तियों को नियंत्रित करता है। भाषा के इन नियमों को एक साथ जिस शास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है उस शास्त्र को व्याकरण कहते हैं। व्यक्ति और स्थान-भेद से भाषा में अंतर आ सकता है। इस प्रकार किसी भाषा का रूप निश्चित नहीं रहता। अज्ञान अथवा भ्रम के कारण कुछ लोग शब्दों के उच्चारण अथवा अर्थ-ग्रहण में गलती करते हैं। इस प्रकार भाषा का रूप विकृत हो जाता है। भाषा की शुद्धता और एकरूपता बनाए रखना ही व्याकरण का कार्य है। वस्तुतः व्याकरण भाषा के नियमों का संकलन और विश्लेषण करता है और इन नियमों को स्थिर करता है। व्याकरण के ये नियम भाषा को मानक एवं परिनिष्ठित बनते हैं। व्याकरण स्वयं भाषा के नियम नहीं बनाता। एक भाषाभाषी समाज के लोग भाषा के जिस रूप का प्रयोग करते हैं, उसी को आधार मानकर वैयाकरण व्याकरणिक नियमों को निर्धारित करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि- व्याकरण उस शास्त्र को क...

भाषा

भाषा(Language)की परिभाषा - भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में-  जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सरल शब्दों में-  सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है। डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार  - मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुअों के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है। डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार - जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है। उपर्युक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है- (1) भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है। (2) भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है। (3) भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्राह्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं। (4) हर वर्ग या समाज...